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बाघ

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बाघ
बंगाल बाघ (P. tigris tigris) बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जंतु
संघ: कौरडेटा (Chordata)
वर्ग: स्तनधारी (Mammalia)
गण: मांसाहारी (Carnivora)
कुल: फ़ेलिडाए (Felidae)
उपकुल: पैन्थेरिनाए (Pantherinae)
वंश: पैन्थेरा (Panthera)
जाति: P. tigris
द्विपद नाम
Panthera tigris
(कार्ल लीनियस, 1758)
बाघों का ऐतिहासिक वितरण (पीला) व 2006 में (हरा)
पर्यायवाची

बाघ या व्याघ्र जंगल में रहने वाला मांसाहारी स्तनधारी पशु है। यह अपनी प्रजाति में सबसे बड़ा और ताकतवर पशु है। यह तिब्बत, श्रीलंका और अंडमान निकोबार द्वीप-समूह को छोड़कर एशिया के अन्य सभी भागों में पाया जाता है। यह भारत, नेपाल, भूटान, कोरिया और इंडोनेशिया में अधिक संख्या में पाया जाता है। इसके शरीर का रंग लाल और पीला का मिश्रण है। इस पर काले रंग की धारियाँ पायी जाती हैं। वक्ष के भीतरी भाग और पाँव का रंग सफेद होता है। बाघ १३ फीट लम्बा और ३०० किलो वजनी हो सकता है। बाघ का वैज्ञानिक नाम "पेंथेरा टिग्रिस" (Panthera tigris) है। यह भारत का राष्ट्रीय प्राणी भी है।

नामोत्पत्ति

बाघ शब्द संस्कृत के व्याघ्र का तदभव रूप है।

जीवन शैली

इसे वन, दलदली क्षेत्र तथा घास के मैदानों के पास रहना पसंद है। इसका आहार मुख्य रूप से सांभर, चीतल, जंगली सूअर, भैंसे जंगली हिरण, गौर और मनुष्य के पालतू पशु हैं। अपने बड़े वजन और ताकत के अलावा बाघ अपनी धारियों से पहचाना जा सकता है। बाघ की सुनने, सूँघने और देखने की क्षमता तीव्र होती है। बाघ अक्सर पीछे से हमला करता है। धारीदार शरीर के कारण शिकार का पीछा करते समय वह झाड़ियों के बीच इस प्रकार छिपा रहता है कि शिकार उसे देख ही नहीं पाता। बाघ बड़ी एकाग्रता और धीरज से शिकार करता है। यद्यपि वह बहुत तेज रफ्तार से दौड़ सकता है, भारी-भरकम शरीर के कारण वह बहुत जल्द थक जाता है। इसलिए शिकार को लंबी दूरी तक पीछा करना उसके बस की बात नहीं है। वह छिपकर शिकार के बहुत निकट तक पहुँचता है और फिर एक दम से उस पर कूद पड़ता है। यदि कुछ गज की दूरी में ही शिकार को दबोच न सका, तो वह उसे छोड़ देता है। हर बीस प्रयासों में उसे औसतन केवल एक बार ही सफलता हाथ लगती है क्योंकि कुदरत ने बाघ की हर चाल की तोड़ शिकार बननेवाले प्राणियों को दी है। बाघ सामान्यतः दिन में चीतल, जंगली सूअर और कभी-कभी गौर के बच्चों का शिकार करता है। बाघ अधिकतर अकेले ही रहता है। हर बाघ का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है। केवल प्रजननकाल में नर मादा इकट्ठा होते हैं।[3] लगभग साढ़े तीन महीने का गर्भाधान काल होता है और एक बार में २-३ शावक जन्म लेते हैं। बाघिन अपने बच्चे के साथ रहती है। बाघ के बच्चे शिकार पकड़ने की कला अपनी माँ से सीखते हैं। ढाई वर्ष के बाद ये स्वतंत्र रहने लगते हैं। इसकी आयु लगभग १९ वर्ष होती है।

संरक्षण

बाघ एक अत्यंत संकटग्रस्त प्राणी है। इसे वास स्थलों की क्षति और अवैध शिकार का संकट बना ही रहता है। पूरी दुनिया में उसकी संख्या ६,००० से भी कम है। उनमें से लगभग ४,००० भारत में पाए जाते हैं। भारत के बाघ को एक अलग प्रजाति माना जाता है, जिसका वैज्ञानिक नाम है पेंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस। बाघ की नौ प्रजातियों में से तीन अब विलुप्त हो चुकी हैं। ज्ञात आठ किस्‍मों की प्रजाति में से रायल बंगाल टाइगर उत्‍तर पूर्वी क्षेत्रों को छोड़कर देश भर में पाया जाता है और पड़ोसी देशों में भी पाया जाता है, जैसे नेपाल, भूटान और बांगलादेश। भारत में बाघों की घटती जनसंख्‍या की जांच करने के लिए अप्रैल १९७३ में प्रोजेक्‍ट टाइगर (बाघ परियोजना) शुरू की गई। अब तक इस परियोजना के अधीन बाघ के २७ आरक्षित क्षेत्रों की स्‍थापना की गई है जिनमें ३७,७६१ वर्ग कि॰मी॰ क्षेत्र शामिल है।[4]

इतिहास

भारतीय बाघ अपने प्राकृतिक आवास में

बाघ के पूर्वजों के चीन में रहने के निशान मिले हैं। हाल ही में मिले बाघ की एक विलुप्त उप प्रजाति के डीएनए से पता चला है कि बाघ के पूर्वज मध्य चीन से भारत आए थे। वे जिस रास्ते से भारत आए थे कई शताब्दियों बाद इसी रास्ते को रेशम मार्ग (सिल्क रूट) के नाम से जाना गया। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और अमेरिका में एनसीआई लेबोरेट्री ऑफ जीनोमिक डाइवर्सिटी के वैज्ञानिकों के मुताबिक[2] १९७० में विलुप्त हो जाने वाले मध्य एशिया के कैस्पियन बाघ व रूस के सुदूर पूर्व में मिलने वाले साइबेरियाई या एमुर बाघ एक जैसे हैं। इस खोज से यह पता चलता है कि किस तरह बाघ मध्य एशिया और रूस पहुंचे। आक्सफोर्ड के वाइल्ड लाइफ रिसर्च कंजरवेशन यूनिट के एक शोधकर्ता कार्लोस ड्रिस्काल के अनुसार विलुप्त कैस्पियन और आज के साइबेरियाई बाघ सबसे नजदीकी प्रजातियां हैं। इसका मतलब है कि कैस्पियन बाघ कभी विलुप्त नहीं हुए। अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि ४० साल पहले विलुप्त हो गए कैस्पियन बाघों का ठीक से अध्ययन नहीं किया जा सका था। इसलिए हमें डीएनए नमूनों को फिर से प्राप्त करना पड़ा। एक अन्य शोधकर्ता डॉ॰ नाबी यामागुची ने बताया कि मध्य एशिया जाने के लिए कैस्पियन बाघों द्वारा अपनाया गया मार्ग हमेशा एक पहेली माना जाता रहा। क्योंकि मध्य एशियाई बाघ तिब्बत के पठारी बाघों से अलग नजर आते हैं। लेकिन नए अध्ययन में कहा गया है कि लगभग १० हजार साल पहले बाघ चीन के संकरे गांसु गलियारे से गुजरकर भारत पहुंचे। इसके हजारों साल बाद यही मार्ग व्यापारिक सिल्क रूट के नाम से विख्यात हुआ।[5]

चित्र दीर्घा

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Chundawat, R.S., Habib, B., Karanth, U., Kawanishi, K., Ahmad Khan, J., Lynam, T., Miquelle, D., Nyhus, P., Sunarto, Tilson, R. & Sonam Wang (2008). Panthera tigris. 2008 संकटग्रस्त प्रजातियों की IUCN लाल सूची. IUCN 2008. Retrieved on 9 October 2008.
  2. Linnaeus, Carolus (1758). Systema naturae per regna tria naturae:secundum classes, ordines, genera, species, cum characteribus, differentiis, synonymis, locis. 1 (10th संस्करण). Holmiae (Laurentii Salvii). पृ॰ 41. मूल से 2 June 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 सितंबर 2008.
  3. "शानदार शिकारी" (एचटीएम). झारखंड सरकार. अभिगमन तिथि 25 December 2008.[मृत कड़ियाँ]
  4. "राष्‍ट्रीय पशु" (पीएचपी). भारत सरकार. मूल से 27 जनवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 December 2008.
  5. "रेशम मार्ग से भारत आए थे बाघों के पूर्वज" (एचटीएमएल). जागरण. अभिगमन तिथि 15 January 2008.[मृत कड़ियाँ]
भारत भारत के राष्ट्रीय प्रतीक
ध्वज तिरंगा
राष्ट्रीय चिह्न अशोक की लाट
राष्ट्रभाषा कोई नहीं
राष्ट्र-गान जन गण मन
राष्ट्र-गीत वन्दे मातरम्
मुद्रा (भारतीय रुपया)
पशु बाघ
जलीय जीव गंगा डालफिन
पक्षी मोर
पुष्प कमल
वृक्ष बरगद
फल आम
खेल मैदानी हॉकी
पञ्चांग
शक संवत
संदर्भ "भारत के राष्ट्रीय प्रतीक"
भारतीय दूतावास, लन्दन
Retreived ०३-०९-२००७