कोई भी जान बूझ कर बीमारी, नुकसान, संघर्ष, अभाव नहीं चुनता
कोई भी जान बूझ कर बीमारी, नुकसान, संघर्ष, अभाव नहीं चुनता.
तो क्या यह सज़ा है?
किस बात की सज़ा?
यह प्रश्न, यह जिज्ञासा आपके अंदर बेआरामी पैदा कर देती है.
आपको इस प्रश्न पर आकर रुकना होगा और इस बेआरामी को समाहित करना होगा जैसे कि आप इस बेआरामी से भाग नहीं सकते. सभी सांत्वनायें, शिकायतें इस पल की गहनता को कम कर देते हैं.
आप असहज हो जाते हैं जब आप बेतुकी या फूहड परिस्थिति का सामाना करते हो. आपको अपनी असहजता के साथ सहज होना है. नहीं तो आप शिकायत करने, दोष लगाने या अपने को दोषी मानने में ही अटक जाते हो.
क्या आप इस समय जैसा है वैसे ही देख सकते हैं, जब आपके ऊपर कोई शारीरिक खतरा नहीं है, चाहे जितनी भी मुश्किल परिस्थिति है, चाहे कितना भी आपको नीचा दिखना पड रह है, चाहे आप कितना भी भय अनुभव कर रहे हैं, चाहे आप कितनी भी अनिश्चितता, उलझन अनुभव कर रहे हैं?
अचानक आप जीवन की चमक देखने लग जाते हैं. आपमें परिवर्तन आ चुका है.
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